साजन के घर डोली में मैं बैठ कभी अपने साजन घर आई थी , आंखों में लाखों सपने थे घुंघट में शरमाई थी ! मांग भरी सिंदूर ढेर सा फिर दुल्…
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ये कैसा मौसम यह कैसा मौसम आया है ना दिखाई देती कोई धूप नहीं कोई छाया है लग रहा था बसंत जैसे आ गया पतझड़ ही अब पत्ते भी शाखों से टूटे हुए हैं प…
Read moreसुनी है धरती सुनी है आज धरती सब गलियारे सुनसान हो गए जलती लाशें ,रोते इंसान सब दामन अश्को से भीग गए फैल गया हवाओं में ये जहर कैसा …
Read moreकितना मुश्किल है कितना मुश्किल है वक्त देखो संभल जाओ बहता ये रक्त देखो पल पल डर रहा हर इंसान देखो कोई न रोक पा रहा ये सब होकर देख र…
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