देह मिलन
देह मिलन क्या शाश्वत प्रेम ?
सहमी इच्छाओं को जगाता
हो निश्छल झरनें सा बहता
खीचता प्रेम आलिंगन हो
स्वच्छन्द सा क्षणिक बन्धन
बिलख रहा भीतर अंतर्द्वंद
इक दूजे के लिए समर्पण
आनंद में डूबता मन हो
गहरा सा आत्मिक संयोजन
बिखरता आवेग विरक्त मन
एक मौन पीड़ा या घुटन
क्या भावनाओं का दमन है ?
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