Showing posts with the label Labour PoemShow all

वो तोड़ती पत्थर नए

वो तोड़ती पत्थर नए                   तोड़ती रहती हर रोज वो पत्थर नए सिर पर थामे बोझ हाथों में फावड़ा कुदाली लिए निकल पड़ती निज भोर होते ही न मौसम की सुध न स…

Read more

चल पड़ा है वो

चल पड़ा है वो                     हांथो में कुदाली फावड़ा ले चल पड़ा है वो   पसीने से तर बतर अपनी थकान कभी न देखता है जो   फ़टे मेले कुचैले वस्त्र पहनकर भ…

Read more

वो मजदूर है

वो मजदूर है   रोज नए घर बनाता कभी न थकता है वो कभी इधर कभी उधर निकल पड़ता है वो नित नए आशियाने बनाता कभी एक घर  पर  न ठहर सका है वो सबके लिए एक…

Read more