वो मजदूर है
रोज नए घर बनाता कभी न थकता है वो
कभी इधर कभी उधर निकल पड़ता है वो
नित नए आशियाने बनाता कभी एक घर पर
न ठहर सका है वो
सबके लिए एक राह बनाता उनपर कभी न चलसका है वो
हर निर्माण की नींव रखता घर मकान मंदिर बनाता
जैसे ही सूरज निकलता घर से चल पड़ता है वो
खाके रूखी सुखी गुजर बसर करता है वो
ऊंचे महलो से क्या लेना उसे सजाकर छोटी
सी झोपड़ी उसी में रहता है वो
सदियों से इसी हाल में रह रहा कभी न बदला है वो
फिर भी एक नई आधारशिला रखने दौड़पड़ता है वो।।
रोज नए घर बनाता कभी न थकता है वो।।
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