मुंशी प्रेमचंद एक महान साहित्यकार थे।उनके बारे में हम पढ़ते है ,तो एक महान व्यक्तित्व के दर्शन होते है।
साहित्यकार प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय था और उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के समीप लमही नामक ग्राम में हुआ था। पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में मामूली नौकरी करते थे। वे जब सिर्फ आठ साल के थे तब माँ का निधन हो गया। पिता ने दूसरा विवाह कर लिया लेकिन वे मां के प्यार और वात्सल्य से वंचित ही रहे।
प्रेमचंद जब पन्द्रह वर्ष के हुए तभी इतनी अलप आयु में ही उनका विवाह कर दिया गया। सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।
प्रेमचंद अपने विवाह से बिल्कुल प्रसन्न नही थे। उन्होंने अपने एक विवरण में अपने हॄदय की बात लिखी,जिसमे लिखा कि “पिताजी ने जीवन के अंतिम वर्षों में एक ठोकर खाई और स्वंय तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया और मेरा विवाह बिना सोचे समझे करा दिया । यह मेरी जीवन की ऐसी सच्चाई है जिसे मैं चाहकर भी बदल नही सकता।
बाल्यकाल से ही उन्होंने जीवन के बड़े बड़े दुख दर्द देख लिए थे।अतः यह सब उनके साहित्य में झलकता है।
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, पर्शियन (फ़ारसी) और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी. इंटरमीडिएट कक्षा में भी उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य एक विषय के रूप में पढा था।
पारिवारिक कटुताओं तथा विवादों के कारण उनकी पत्नी उन्हें सदा के लिए छोड़कर मायके चली गयी और कभी वापस नही आई। 1906 में उनका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। वे सुशिक्षित महिला थीं जिन्होंने कुछ कहानियाँ और प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन सन्ताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
कर्मभूमि, ईश्वरीय न्याय
सेवासदन ,इस्तीफा
रूठी रानी एक आंच की कसर
रंगभूमि ,कप्तान साहब
प्रेमाश्रम कर्मों का फल अंधेर
गोदान ,अपनी करनी
गबन ,अमृत
निर्मला ,आखिरी तोहफा
कायाकल्प ,बड़े घर की बेटी
प्रतिज्ञा ,मनावन।
प्रेमचंद का स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ा ही चला गया आर्थिक संकट तथा एवं लंबी बीमारी के कारण 8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचंद का निधन हो गया।
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