***दिव्यांग नही दिव्य***
 

 

अंनत सा दर्द हिय में समेटे
जीना  है  सबसे  यूँ   हटके
विश्वास हो दृढ़ संकल्प भरा
रखना  दर्द  एक  और  धरा

काया से विकलांग भले हूँ
हिम्मत  से   हारी  नही  हूँ
साहस से निर्भीक खड़ी हूँ
मन   में  यूँ  लाचारी  नही

कर  दिखाऊंगी कुछ ऐसा
जो इन सबसे ऊपर होगा
छँट  जायेगा ये तिमिर भी
नयनों में जब सवेरा होगा।

लाचारी  को  भीतर  न धरना
हारकर कभी न रुकना जाना
प्राणों  को  स्फूर्ति  से  भरना
आशाओ के  नभ में दमकना

मजबूर नही मजबूत तुम हो
अनूठे,विशेष  सपूत तुम हो
आस,विश्वास  से भरे रहना
दिव्यांग  नही दिव्य तुम हो।