पिछले माह  मुझे काव्य गोष्ठी हेतु  वृद्धा आश्रम जाना था । वहां पर जब मैं गई तब मेरी दृष्टि उन माताओं पर पड़ी । वे  आने जाने वालों को एक निराशा भरी दृष्टि से देख रही थी। मुख पर केवल एक ही प्रश्न था कि अब उनसे मिलने कोई आएगा भी अथवा नहीं ?
 वही  पर बैठी हुई एक माता से हमने मैंने कुछ मुस्कुरा कर बात की ।हमारे साथ एक साथी और हमने उनके चरण स्पर्श करने चाहे उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े । वे भावुक होकर स्वतःही अपनी व्यथा और पीड़ा बतलाने लगी।उन्होंने जो बताया वह सत्य चौंकाने वाला था। उन्होंने बताया उनका बेटा एक बड़ा व्यवसायी है,जिसका करोडों का कारोबार था । वही खुद उन्हें यहां पर छोड़कर गया था । वह रोकर कह रही थी कि उनका इस दुनिया में कोई नहीं है उनकी बात सुनकर मैं भी भावुक हो गई।
वर्तमान में वृद्ध आश्रमों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती इसके कई कारण है।
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वृद्धाश्रम वरदान है अथवा अभिशाप

 वृद्ध आश्रम ना तो वरदान है नहीं अभिशाप ।यह तो एक ऐसा आश्रय स्थल है, जहां पर वे लोग निवास करते हैं जो अपनों के द्वारा दुखी एवं सताए गए हैं । जिनकी देखभाल करने वाला कोई ना हो। वृद्धाश्रमो की संख्या कम करने अथवा इनको बंद करना समस्या का हल नहीं है ।बल्कि इन अत्याचारों एवं प्रताड़नाओं के खिलाफ कानून बनने चाहिए ।जो उन्हें जिम्मेदारियां का एहसास कर सके । इसके विपरीत यदि वृद्ध आश्रम को बंद कर दिया जाए तो वे लोग जो अपनों के द्वारा सताए गए हैं निराश्रित है वह लोग कहां जाएंगे ?
उनकी देखभाल कौन करेगा ? कुछ स्वार्थी तथा बेईमान व्यक्तित्व के कारण माता-पिता वृद्धावस्था में आश्रमों में ठहरने को विवश हो जाते हैं एवं कई लोग जिनका कोई नहीं होता वह भी वृद्ध आश्रम में ही रहते हैं।

वृद्ध आश्रम की संख्या घटाने के ठोस उपाय

1 जिम्मेदारियां का एहसास – युवक एवं युवतियों को अपनी जिम्मेदारियां का एहसास कराया जाना चाहिए कि उनके माता-पिता को पोषण करना उनका कर्तव्य एवं जिम्मेदारी है जिससे वह माता-पिता को अपने साथ अपने घर में रखें प्रदर्शन ना भेजें ।

2 कानूनी कार्यवाही एवं ठोस कानून– सरकार एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं द्वारा इस दिशा में कठोर कानून बनाने चाहिए ।यदि कोई आश्रित सदस्य को निराश्रित बेसहारा के रूप में छोड़ देता है अथवा उसका पालन पोषण नहीं करता तो वह पारिवारिक सदस्य दंड का भागी बनेगा ।कानून के इस प्रकार के भय से भी व्यक्ति वृद्ध आश्रम ना भेज कर अपने घर के सदस्य को स्वयं के पास ही रखेगा ।इससे भी वृद्ध आश्रमों की संख्या में कमी आएगी।

3 संस्कार पूर्ण शिक्षा–बालक बालिकाओं को बाल्यावस्था से ही बड़ों का आदर सम्मान भाव एवं सुसंस्कार पूर्ण वातावरण प्रदान करना चाहिए ।जो कि आगे चलकर एक अच्छे युवक युति बनाकर बुजुर्गों के प्रति अच्छा रवैया रख सके ताकि किसी को वृद्ध आश्रम न जाना पड़े।

4 आपसी प्रेम व सम्मान – संबंधों में परस्पर प्रेम व सम्मान रखा जाना चाहिए । घर के बड़े जैसे माता-पिता आदि द्वारा अपने से बड़े वृद्धो के साथ सम्मान पूर्ण व्यवहार से पेश आना चाहिए जिससे कि बच्चे उनसे शिक्षा लेकर रिश्तो में आपसी प्रेम बनाकर रख सके।

5 संबंधों का महत्व–परिवार के हर सदस्य एक दूसरे के पूरक होते हैं ।सभी एक वृक्ष की शाखों के समान आपस में जुड़े हुए होते हैं। सभी को संबंधों का उचित महत्व बतलाया जाना चाहिए कि हर एक सदस्य दूसरे के बिना अधूरा है । प्रत्येक का आदर एवं समान महत्व है फिर चाहे वह युवा हो अथवा वृद्ध जन हो।

6 संपत्ति का बंटवारा – परिवार में सबसे बड़ा आधार प्रेम ही होता है ।आपसी प्रेम,सौहाद्र के बिना परिवार की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।फिर भी सुरक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए परिवार के बड़े सदस्यों जैसे माता-पिता द्वारा जीवित रहने तक की दशा में संपत्ति का बंटवारा नहीं किया जाना चाहिए जिससे किसी भी अन्य स्थिति में उन्हें विपरीत दशाओं का सामना न करना पड़े।
यह सभी कारक है जिससे वृद्ध आश्रमों की संख्या को कम करने में सहायता मिल सकती है।

धन्यवाद