चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। अंग्रेजी कैलेंडर का नववर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है जबकि हिंदू नववर्ष का आरंभ गुड़ी पड़वा से माना जाता है।इस त्यौहार महाराष्टीयन परिवारों में प्रमुखता से मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा मनाने के कारण :
गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे कारण यह है कि ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरु होता है। अत: इस तिथि को 'नवसंवत्सर' भी कहते हैं। इसके अलावा इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरंभ भी होता है।
चैत्र के माह में मौसम तथा ऋतु में भी परिवर्तन होता है। जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। वृक्षों में नव कोपल भी आने लगते है।इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।
महाराष्ट्र तथा मराठी परिवारों में इस दिन पूरन पोली तथा श्री खण्ड बनाया जाता है।गुड़ी को देवी के रूप में पूजा जाता है एवं श्रीखंड तथा पूरनपोली का भोग माता को अर्पित किया जाता है।
गुड़ी पड़वा का महत्व : गुड़ी हर्ष उल्लास तथा सम्पन्नता की देवी है।गुड़ी को माताजी के रूप में पूजा जाता है।गुड़ी बनाने हेतु जरी वाला कपड़ा अथवा नई सुंदर साड़ी को लगाया जाता है जो कि समृद्धि का प्रतीक है। उसके ऊपर फूलों की माला लगाई जाती है जो कि आस्था तथा पवित्रता का सूचक है।इसके साथ नीम के पत्ते ,जो कि आरोग्य को दर्शाते हैं। शक्कर की माला तथा कंगन से भी गुड़ी को सजाया जाता है ,इससे रिश्तों में मिठास बनी रहती है। गुड़ी पड़वा के दिन कोई भी शुभ कार्य करने हेतु महूर्त देखने की आवश्यकता नही होती।इस दिन किसी व्यापार का प्रारंभ,गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य करके जन माँ का आशीर्वाद पाकर शुभता तथा सुख समृद्धि प्राप्त करते है।
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