|| Hindu Navvarsh Gudi Padwa||गुड़ी पड़वा पर एक प्यारी सी कविता हिंदी में||गुड़ी पड़वा/हिन्दू नववर्ष 
नव वर्ष का सुखद आगमन है
सनातन  धर्म का अनुगमन है
हिंदू  संस्कृति,  आलोक प्रज्ञा
धर्म  संस्कार  हेतु  ले प्रतिज्ञा।

नव  पल्लव, कोपले आई
कलियाँ चटककर मुस्काई
नव्य पुष्प से महकी क्यारी
सेवंती की फिर आई बारी।

उपवन में सुमन  खिल आये 
मधुकर  रस  पीने  को आये
तरु  ने  पीले  पात बिखराये
टूटे  पात पथ को ढँक आये।

हिंदू  पंचांग  में   माह  निराले
माघ, फागुन,  चैत्र  आदि सारे
चैत्र   शुक्ल  प्रतिपदा  ही  तो
'गुड़ी पड़वा' नववर्ष कहलाता

बहीखातों का  नववर्ष  यही
लिखें जीवन में  अध्याय सही
छाये     सर्वत्र     स्नेह    हर्ष
प्रेम   समर्पण   पूर्ण   उत्कर्ष

मानवीय  मूल्य निष्ठा सदा
भारतीय  मनाये  प्रतिपदा
सत्य,अहिंसा को अपनायें
इर्ष्या, बैर   दूर  हो   जायें

नव्य उत्साह हो  हिय में भरा
सुंदरतम  बन  जाये यह धरा
 बनाये  परिंदे  फिर  घोसला
 भरें   भीतर   सदा   हौसला

ये  विश्वास भीतर ही  रखना
हर्ष  उल्लास ,संचार  करना
दुख,  वैमनस्य  को त्याग दें
मिलजुल कर प्रेम से भाग लें।

संस्कृति हमारी कहती यही
सनातन वर्ष का प्रारंभ यही
चैत्र शुक्ल की प्रथमा तिथि
हिंदू नव वर्ष की  रीति यही

आर्यभूमि   करें   यह   कामना
सनातन नववर्ष की यह भावना
नव  गति, लय  का  शुभारंभ है
यही   नववर्ष   का   प्रारंभ   है।