तान के सीना कर्तव्य पथ पर अड़ा है वो
करने रक्षा मातृभूमि की निडर होके खड़ा है वो
मौसम ऋतु कोई न डिगा पाते उसे
दुख ,बीमारी तकलीफों,को भुलाकर फिर
चल दिया है वो
न घुस पाए घर मे कोई , बनकर ढाल राह में खड़ा है वो
भुलाके जिंदगी परिवार को अपने घर बंनाने सबका
चल दिया है वो
रक्षक बन अड़ा रक्षक बन खड़ा दुश्मनों से लड़ा है वो।
न देख सके कोई शत्रु हमारी और बनके सपूत तनके
खड़ा है वो ||
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