**** दूर सितारे****
कितने दूर ये सितारे हैं  
नयनों को जो भी प्यारे है
जल रहा यूं दीपक फिर भी 
सदन में अजब नजारें है

जगमगाता गगन तारों भरा
नित ही स्वर्णिम आभा सजा
स्वप्न जगत सी माया नगरी
तिमिर संग है यामा बिखरी

सजल नयन ही स्वप्न देखती
दारुण पीड़ हिय चीरती
शुष्क अधर तब अमी पुकारते
कोमल रश्मियां नयन निहारते

विवश होते कोमल नजारे
उपवन ठहरे कभी बहारें
कभी होते उपालंभ गहरे
निर्जन बेबस बसते सहरे 

सूक्ष्म दीप एक आस जगाता 
तिमिर कहां सदन से जाता
दीर्घ कितनी एकाकिनी निशी
मधुकामिनी थी पग में बिछी

मध सा छलके नेह सारा
तटिनी बहती सुदूर किनारा
बरबस रवि तो कभी विहंसता 
उपवन रम्य प्रसून खिलता

विस्मृत कर अदभुत नजारें 
दामन में कभी सुलगते अंगारे
क्षण था तनिक भी ना ठहरा
मासूम सांसों पर था पहरा।