घर आंगन आज हुये सूने
टूटे हुये कुछ खेल खिलौने
गुड्डों को सहेज लाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
गृह,सदन का बोझ उठाते
फिर भी सदा कष्ट सह जाते
पीड़ा को यूं समझना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
अनगिनत से है गृह उजड़े
उपवन से मिट गये भंवरे
इस दर्द को मिटाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
घर परिवार की जिम्मेदारी
लेते नाज़ुक कंधों पर सारी
पीड़ा को सहलाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
युवा पीढ़ी को शिक्षित करें
बेटियों को संस्कारित करें
देश में संदेश लाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
दया ,धर्म का पाठ पढ़ायें
पशु से उनको मानव बनायें
हृदय कोमल बनाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
हृदय ना रहे पशुता भरी
भीतर ना हो क्रूरता धरी
सबक आज ही सिखाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
उपवन में कलियां फूल सारे
कभी बेबस होते नजारे
शूल संग प्रसून हटाना होगा
अब बेटों। को बचाना होगा
मानव जाति पर है कलंक से
सरोज संग ही मलिन पंक से
नीलकमल खिलजाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
रोती माता भगिनी सारी
सूनी हुई आज फूलवारी
उपवन को महकाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
देखते स्वप्न जीवन संगिनी
हो धवल हृदय,सी हंसिनी
विवाह से ही भय खायेंगे
कैसे जीवन सजायेंगे
देवालय होती पूजा आरती
दीप बुझाती कोई राक्षसी
दुष्ट प्रवृत्तियों भय खाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
मात पिता समझे जिम्मेदारी
स्वार्थ परे संतान हमारी
जीवन महत्व समझाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
सोनम,हो या मुस्कान सभी
बहिष्कृत करे समाज अभी
बला से दूर जाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा
जब समानता की बात करें
संस्कारों को हम याद करें
काज हमें कर जाना होगा
अब बेटों को बचाना होगा।।
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