एक रोमांटिक सी कविता !! शेष रात है !!
न  पूछना  कितनी  शेष रात है 
बीत गई  अश्क संग बरसात है 
आये   बदरा    घिर   घिर सारे 
अधूरी   रह   गई  मुलाकात है

विधु   संग   अब ज्योत्सना आई 
निशा के आंचल आया प्रभात है 
हिय  आज   भावों से भरा हुआ
पलते  बिखरते कुछ जज्बात है 

सुंदर    रम्य   सज   संवरकर   बैठी 
अवगुंठन   मुखड़ा  ढके कायनात है 
बुझती ज्योति प्रतिपल कांप कर यूं
वेदना     भीतर   पाले   आघात  है 

नभ  में बिखरते  अनंत सितारे 
धवल गगन के अंगने बारात है 
टूटती   बिलखती   बैठी निशी 
पोंछकर  तिमिर ले अवदात है

मुखडे   सकुचे  सिमटे   सारे 
जाने     पहचाने    अज्ञात है 
उषा की कड़ी प्रतीक्षा करती 
फिर  भी   ना बीती ये रात है।