छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता पर एक कविता हिंदी में// वीर संभाजी
महापराक्रमी, परमप्रतापी
शूरवीर सा इक राजा था
माँ भारती पर मिटनेवाला
आक्रामक सिंह के जैसा था
लड़ी एक सौ बीस लड़ाइयाँ
हारा जिसमे कभी ना था
स्वराज्य रक्षक,हिन्दू राष्ट्र का
शिवपुत्र ,शासक अनोखा था
औरंगजेब के हाथ ना आया
मुगल साम्राज्य भी घबराया
मौत को देख भी मुस्कुराया
मस्त पवन का वो झोंका था
देख औरंगजेब थरथराया
हिम्मत उसकी देख घबराया
हॄदय में थी ज्वाला धधकती
नयनों से थी अग्नि भड़कती
मृत्यु भय भी तोड़ ना पाया
अजब साहस संभा ने दिखलाया
अंग अंग तब यूँ कटता जाता
घाव देख दुश्मन खिलखिलाता
क्रूर औरगंजेब ने सताया
हर घाव पर संभा मुस्काया
जीभ, नख,आँखे सब गँवाई
फिर भी संभा ने हार न मानी
चला गया हँसते मुस्कुराते
हार गये सब उसे सताते
मृत्यु ने जब दी थी सलामी
सो गया धरा अमर बलिदानी
औरंगजेब थककर चूर हुआ
घमंड उसका चकनाचूर हुआ
शौर्य, साहस उसने माना
संभा की शक्ति को पहचाना
हर कोई यही इच्छा करे
संभा जैसा धैर्य सब धरें
माँ भारती का प्यारा लाल वो
सबका ही गुरूर अभिमान था
मन से संभा कभी ना हारा
हिम्मत से था भाल उठाया
हँसते हुये मौत हरा गया
शत्रु को सबक वो सिखा गया
हाथी,घोड़े ,खंजर तलवारें
मानो युद्ध की तैयारी है
जंजीरों में यूँ जकड़ा मेरा
संभा ही सबपे भारी है
सिंह सा भीषण हुँकार किया
अपनी वीरता का विस्तार किया
मराठा साम्राज्य की लहर है
संभा तेरी वीरता अमर है।।
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