लालच को सबक।।लालचियों को सबक सिखाती एक प्रेरक कहानी हिंदी में।।


एक बूढ़ा अपने बेटे और बहू के साथ रहता था ।बूढ़ा अत्यंत चतुर तथा बुद्धिमान था, उसके बेटा बहु दोनों अत्यंत लालची स्वभाव के थे। वह बिना लालच के किसी से कोई मतलब नहीं रखते थे ।बिना फायदे के कोई काम नहीं करते थे। 
वे बूढ़े को समय पर खाना भी नहीं देते थे तथा उसके साथ दुर्व्यवहार किया करते थे ,बहू भी उनसे कभी अच्छी बात नहीं करती थी ।

बेटा यामिनी सुनो मेरे लिए एक गिलास पीने का पानी ले आना 
कहते हुए बूढ़े ने बहु को बार-बार आवाज लगाई लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया बेबस हो बुध जमीन पर बैठ गया।
 बूढ़े के पैर अत्यंत कमजोर हो चुके थे ,वह अपने कदमों से चल नहीं पाता था। 
उस समय उसे बहुत प्यास लगी थी वह काफी देर तक जमीन पर बैठा रहा फिर धीरे-धीरे उकडू होकर चलने लगा उसे रसोई घर तक पहुंचने में 15 मिनट लग गए ।वह जाकर मटके को छूकर ग्लास भरने लगा ।उसके हाथ से अचानक  मटका छूट गया रसोई घर  सारा पानी बिखर गया तभी बहू दौड़ती हुई आई और जोर से चिल्लाने लगी।
 यह क्या कर दिया बाबूजी आपने? आपको दिन भर तो कोई काम रहता नहीं । हम लोगों को चैन से क्यों नहीं रहने देते?

 बूढ़ा अचानक घबरा गया और उसे गिरे हुये पानी को ग्लास से लगाकर पीने लगा बहू तमतमाती हुई रसोई घर से चली गई ।

बूढ़े की आंखों में आंसू आ गये वह अपनी प्यास भी नहीं बुझा पाया । जितना पानी था उतना पीकर वह घुटने रगड़ते हुये वहां से चला गया। 

अपने कमरे में बैठे-बैठे बूढ़ा अपनी मृत पत्नी को याद कर रहा था। उसने अपनी मृत पत्नी की तस्वीर की तरफ देखा। आज तुम होती तो मेरा ख्याल रखती मुझे यूं ठोकर नहीं खाना पड़ती सोचते सोचते बूढ़े की आंखों में आंसू आ गये। 

बूढ़ा चारपाई पर लेटा हुआ था उसकी आंख लग गई । सुबह जब उठा तो किसी ने जोर से आवाज लगाई ।

मनमोहन,
कहां हो ? 
मनमोहन उठकर बैठ गया ।तभी उसके पास उसका बचपन का दोस्त सुमेर सिंह गांव से आया हुआ था उसे देखकर बूढ़ा अत्यंत प्रसन्न हुआ। 

उसने मनमोहन के पास बैठकर बहुत प्रेम से बातें की मनमोहन भी उससे अपने मन की बातें कहना चाहता था ।

सुमेर सिंह मैं बहुत परेशान हूं ।
क्यों तू किस लिए परेशान है ?
तेरे बेटे बहु तेरे साथ में है ,फिर तू क्यों परेशान होता है ?

सुमेर सिंह यह लोग मुझे खाना नहीं देते, खाना तो बहुत दूर की बात है पानी तक को नहीं पूछते। बहु मुझसे ढंग से बात नहीं करती। मुझे पानी लेने उसे कमरे तक अपने घुटने रगड़ते हुये जाना पड़ता है ।
ऐसा क्यों? यह तो तेरे बच्चे तेरा ख्याल क्यों नहीं रखते ?
 मैं अभी उनसे बात करता हूं ।
नहीं सुमेर तुम उनसे बात मत करो ।वह दोनों मुझे घर से निकाल देंगे और अब इस उमर में मैं कहां जाऊंगा? कैसे रहूंगा?
 मेरे पैर काम नहीं करते। मुझे घुटनों के बल रगड़ कर जाना पड़ता है इसी चारपाई पर पड़े पड़े मेरा दम निकल जायेगा।
मनमोहन तू ऐसी बात मत कर मैं कुछ सोचता हूं तेरे लिए 
कहते हुए सुमेर सिंह उसके कान में कुछ फुसफुसाने लगा ।
सुमेर सिंह की बात सुनकर बूढ़ा मुस्करा उठा ।
देख मनमोहन ये काम तुझे ही करना होगा मैं इसमें तेरी मदद करूंगा ।
यह काम तू कर ले फिर देख बाकी तुझे कोई परेशान नहीं करेगा । तू अपना समय बहुत सुख में गुजार लेगा ।
तू सच कहता है सुमेर सिंह ?
हां मनमोहन में बिल्कुल सच कहता हूं ।तुझे यही करना होगा ठीक है 
बूढ़े ने  हाथ से इशारा किया और बहुत पुरानी जंग खा रही  संदूक उसने उठाने के लिए कहा ।
सुमेर सिंह मैं इसे अभी साफ कर देता हूं ।
तू बैठ मनमोहन मैं साफ कर देता हूं। 
पूरी संदूक साफ करते हुये सुमेर सिंह ने उसे चमका दिया।बहुत मेहनत से संदूक साफ करने बाद बूढ़े ने कहा अब इसे वापस उसी जगह पर रख दे और छिपा दे ताकि मेरे बेटे और बहू की नजर इस पर ना पड़ सके ठीक है ।
मनमोहन मैं कल फिर आऊंगा तेरा सामान लेकर। 
ठीक है
 अब तू सो जा मनमोहन आराम से सो जा समझ ले तेरा अच्छा समय आ गया है। 
कहते हुए सुमेर सिंह वहां से चला गया ।
दूसरा दिन प्रात काल सुमेर सिंह वापस बूढ़े के पास आया।
 मनमोहन ,मनमोहन कहते हुये उसने आवाज लगाई 
बूढ़ा गहरी नींद में सोया था तभी वह अंदर की ओर दाखिल हुआ 
मनमोहन देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूं बूढ़ा उठकर बैठ गया 
यह देख 
वह ऊपर से संदूक उतार ले कहते हुये मनमोहन ने हाथ से इशारा किया तभी समर सिंह ऊपर चढ़ा और उसने वह  संदूक उठा ली 
उसे खोलके  उसमें लोहे के कुछ वायसर,कुछ कीलें, और कुछ पतले तार रख दिए और उसे बंद करके जोर-जोर से हिलाया। उनके हिलने की आवाज सिक्कों के समान थी ।उनकी आवाज बिल्कुल सिक्कों के खनखनाने की आवाज से मिलती-जुलती थी। अब इसे ताला लगा देता हूं और इसकी चाबी तू उसे अपने पास ही रखना जब तक तू जिंदा है तब तक
बूढ़ा बहुत प्रसन्न था मानों उसे खजाना सा मिल गया था ।उसने संदूक को जोर-जोर से बजाना शुरू किया तभी बेटे बहू के कान में वह आवाज पड़ी बहु बड़ी चालाक थी। 
वह अपने पति के पास जाकर बोली बाबूजी के पास बहुत सारा खजाना है ।
बेटे ने आश्चर्य से पूछा बाबूजी के पास खजाना है ?
हां मैंने आवाज सुनी है सिक्कों की आवाज वह भी बहुत सारे सिक्कों की आवाज ।बाबूजी हमसे अब तक छुपाते रहे पर उनके पास बहुत सारा खजाना है
मुझे पता ही नहीं था मैंने उनसे कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया ।अगर मुझे पता होता तो मैं उनकी सेवा करती आखिर उनके बाद वह सब कुछ हमें ही तो मिलने वाला था ।कुछ ही दिन की बात है ।
कहती तो तुम बिल्कुल ठीक हो 
बहु बूढ़े के कमरे में आकर बोली बाबूजी आपको कुछ चाहिये ?
तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो? बहू
 बाबूजी मुझे एहसास हो गया है अपनी गलतियों का मैंने आपसे बहुत बुरा व्यवहार किया ।
बूढ़ा सारी चलाकी समझ रहा था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था ।
बहु मेरे लिए एक गिलास पानी ले आना हां बाबूजी पानी तो ले आऊंगी आप खाना कब खाओगे?
 खाना भी लगा दूं क्या?
 बहु तुम मेरे कमरे तक कैसे आओगी ?
अरे बाबूजी में बैठे-बैठे भी वैसे भी मेरे हाथ पैर अकड़ जाएंगे
कहते हुये वह बूढ़े के लिए खाना लेने चली गई ।आज उसने बहुत सारे पकवान बनाये थे और पकवानों से भरी थाली बूढ़े के आगे कर दी । बूढ़े ने अत्यंत प्रसन्न मन से आज भोजन किया था ।इसी तरह वह रोज बूढ़े का ख्याल रखती बेटा भी अब बूढ़े का ख्याल रखना और उससे इज्जत से पेश आता था ।
वे बूढ़े का सालों तक इसी तरह ख्याल रखते रहे एक दिन सुमेर सिंह आया मनमोहन कैसा है तू ?
बूढ़ा कुछ तंदुरुस्त हो चुका था।
 मैं बहुत अच्छा हूं। यह दोनों लालची मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखते हैं कह कर दोनों दोस्त मुस्कुराने लगे।
 यह सब तेरा ही किया हुआ है सुमेर कहते हुए बूढ़ा उसके गले लग गया।
 अरे कोई बात नहीं भाभी जी के जाने के बाद तो बिल्कुल अकेला हो गया था ।अब तेरा ख्याल कौन रखता?
 हां अगर सावित्री होती तो मेरा ख्याल रखती वह भी मुझसे पहले ही चली गई ।ठीक है मनमोहन अब मैं चलता हूं कहते हुए सुमेर सिंह  चला गया ।
 बूढ़े को बहुत भूख लगी हुई थी ,उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और संदूक जोर से हिलाने लग गया ।तभी बहू के कानों में आवाज गई और वह पकवानों से सजी हुई थाली लेकर बूढ़े के कमरे में आ गई बूढ़े ने झटपट संदूक को ढक दिया।दरवाजा खोल दिया और अत्यंत शांति के साथ भोजन करने लगा इस तरह कई वर्ष बीत गए बूढ़ा शारीरिक रूप से और कमजोर होने लगा।
 बूढ़े ने खटिया पकड़ ली 
बाबूजी बाबूजी कहते हुए बेटा कमरे तक आया बूढ़ा कुछ बोल नहीं सका ।उसने बाबूजी बाबूजी आवाज लगाई और आकर देखा बूढ़े की आंखें बंद हो चुकी थी ।उसकी आंखों में आंसू आ गये।बहू भी पीछे-पीछे आ गई 
अरे बाबूजी हम सब को छोड़कर क्यों चले गये ? मुझे और कुछ दिन सेवा का मौका देते। 

बूढ़े के हाथ पैर ठंडे हो चुके थे वह दुनिया छोड़कर जा चुका था। 
बहु बेटे कुछ देर रोते रहे फिर उनके सब्र ने जवाब दे दिया। उन्होंने बूढ़े के कमरे को अंदर से बंद किया और संदूक उठा ली जल्दी देखो जल्दी खोल कर देखो इसमें क्या है ?
अरे देख तो रहा हूं ।बाबूजी चाबी पता नहीं कहां रखे गये ।
इधर-उधर चाबी ढूंढना चाही, किंतु चाबी थी ही कहां जो मिलती।बूढ़ा उसे पहले ही  फेंक चुका था। 
अरे चाबी नहीं मिल रही है तो क्या सोच रहे हो। मैं पत्थर लेकर आती हूं ।इस ताले को ही तोड़ दो बस ताला ही एक परेशानी है इसको तोड़कर हम दोनों मालामाल हो जायेंगे।
कहते हुए बहू बिना देर किए दौड़ती हुई बगीचे में से एक तेज धार वाला पत्थर उठा लाई और अपने पति के हाथ में दे दिया। लड़का उसे उस ताले पर जोर-जोर से मा रने लगा । बहुत प्रयास के बाद वह ताला टूट गया दोनों की लार टपकने लगी जैसे ही ढक्कन खोल कर देखा दोनों ने अपना सिर पीट लिया ।

उसमें पुरानी  कीले ,लोहे के वाइसर और लोहे के कुछ टुकड़े थे ।दोनों ने उसे हिला कर देखा उसके हिलने पर बिल्कुल सिक्कों जैसी आवाज आती थी। 
मतलब तुम्हारे बाबूजी ने मुझे ऐसे धोखा दिया है। उनके पास कुछ नहीं था यही लोहे की कीलें बाजा बजा कर उन्होंने मेरा दिमाग खराब किया था ।
अब कुछ बोलकर कोई फायदा नहीं ।अब अपना मुंह बंद रखना मैं संदूक को वापस ऊपर पटक देता हूं। 
अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी ।तभी सुमेर सिंह वहां पर आया सुमेर सिंह की भी आंखें बहुत नम हो गई ।
मनमोहन तू  मुझे भी छोड़ कर चला गया कहते हुए सुमेर सिंह रोने लगा ।
मनमोहन को चिता पर लेटे हुए देखा उसकी बंद आंखों में सुमेर सिंह को एक सुकून दिख रहा था ।जैसे वह कह रहा हो मैंने अपना समय इन लालचियों के साथ निकाल लिया । अब सुकून के साथ जा रहा हूं ।सुमेर सिंह सजल नेत्रों से भीतर ही भीतर मुस्कुराने लगा।


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