पहलगाम नरसंहार पर एक मार्मिक कविता हिंदी में // पहलगाम नरसंहार 


हृदय  में  है  जलते अंगारे
आँख  मेरी यूँ  भर आई है
रोते तड़पते उन बच्चों की 
चीखे   जब  से  सुनाई  है

सूनी   हुई    है  गोद  मेरी
ममता   मेरी    घबराई  है
उतर आया  लहू छाती में
आँचल में पीड़ा समाई है

गुल  का  गुलशन मुरझाया है
रुख आज हवा ने बदलाया है
सब  ओर   लाशों  के ढेर लगे 
दानवों  ने     रक्त   बहाया  है

धर्म, जाति के नाम लडके यूँ
कायरता  तुमने  दिखलाई है
दानवों   के   से  कर्म  करके 
तुमने   मानवता   भुलाई  है

दैत्यों  ने   जब    नरसंहार किया
नियति   ने उसे   खबरदार किया
मौत कहीं लिखी होगी लीलार में
खड़े  होंगे वे  इक  दिन कतार में

वीरों  कर्म  अब  करना होगा
शत्रुओं   से  यूँ   लड़ना होगा
निष्ठुर,    क्रूर    इन   दैत्यों से
 मासूम प्राण को बचना होगा

धर्म  पूछ  मौत  देने वालों
हिसाब  ये  बतलाना होगा
दर्द दिया जो आज सबको
वही  दर्द  सह  जाना होगा

वीर सपूतों जागो अब जागने 
की  यही  घड़ी  आज आई है
रोती   बिलखती   माँ  भारती
ने    करुण  पुकार   लगाई है।