****नेह पारावार****
नेह पारावार अंनत गहरा
हिय की गहराइयों ठहरा
कितनी वृहत ये नयन प्रतीक्षा
नियति समाई केवल परीक्षा
क्षण बीता दिवास्वप्न सा
रुचिर मुखड़े संग दर्पण सा
हिय सागर में उठती लहरें
मासूम दिल अनगिनत पहरे
सहसा इक आहट सी आये
सदन में कुछ पद्चाप सुनाये
तीव्र पवन का एक झोंका
देता कभी आँचल उड़ाये
रुकती, काँपती बुझी आशा
जलधि समीप हिय भी प्यासा
सरगम बिन राग ना पूरा
नेह बंधन सदा बने अधूरा
पनपते लबों उपालंभ गहरे
सजल नयन ना भीतर उतरे
तेज हवा से रजकण बिखरा
सूने सदन कोई ना ठहरा।
0 Comments
Post a Comment