***सहर आने दो***
ना रोको सहर को आने दो
सब दुख संताप मिट जाने दो
लेकर अरमानों का पहरा
आयेगा इक स्वप्न सुनहरा
बरबस तड़पती स्याह निशी
को उज्जवल भोर में बदलने
आयेगा रवि धवल सी किरनों
संग उल्लासित फिर चमकने
मिट जायेंगे विषाद सारे
प्रांजल बहती जीवन धारा
स्वर्ण रश्मि सी वर्षा किये
गुम हो जाये दर्द सारा
छँट जायें स्याह पयोद भी
दामिनी गगन में चमकेगी
घनघोर निशी के आंचल में
शशि की आभा भी दमकेगी
आशा,उल्लास से पूरित सदा
साहस,कर्म से मन हो भरा
सूखे पात भी खिल आयेंगे
नवांकुर पल्लवित हो जायेंगे
इक जलधि संग असंख्य तरंगे
जीवंत हिय में सदा उमंगे
नीर कुमुदनी खिल जायेगी
जीवन पथ को महकायेगी।
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