****कर्म पथ****
टूटा हुआ कोई पात नहीं
बिखरी हूँ पर अज्ञात नहीं
बहती हवाओं ने पाला
काली घटाओं ने संभाला
तेज धूप चमकना सिखाया
तूफानों ने पथ दिखलाया
सीप मोती सी रक्षित नही
सिंधु तरंग ने लड़ना सिखाया
पंथ में बिछते गुल तो न थे
घने कंटकों ने रक्त बहाया
क्षत विक्षत थे कदम सारे
कर्मपथ था मुझे याद आया
उज्जवल नयन अनंत आशा
उपजे हिय सहस्त्र अभिलाषा
श्रम, संघर्ष का दीपक जला
कभी था भीतर उजास जगा
कभी चलते चलते आस टूटी
कभी तो थी नियति ही रूठी
किसी पथ तब भी नही रुकी
निमिष बाधा से नही झुकी
कर्म, साहस से मुख मुस्काया
कोमल करावली शशि दिखलाया
भाल स्वर्ण रश्मि चमचमाई
सुनहरे कल ने राह दिखाई।
✍️"कविता चौहान"
स्वरचित एवं मौलिक
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