झांसी की रानी पर एक सुंदर कविता हिन्दी में !! 

***झाँसी की रानी***

जब रानी ने चमकती हुई
इक   तलवार  उठाई  थी
फिरंगियों को मार भगाया
लक्ष्मी बाई  कहलाई  थी

कूद   पड़ी   थी  रण भूमि में
इक     मशाल   जलाई   थी
अंतिम साँस तक लड़ती रही
 वो  रवि  सी  जगमगाई  थी

प्राप्त  हुई थी वीर गति को
हाथ कभी ही ना आई  थी
हँसते  हँसते  जब  रानी ने
अपनी ही चिता जलाई थी।

कभी न गुड्डे गुडियों संग खेली
तलवार   थी  उसकी   सहेली
साहस,वीरता  के बल पे रानी 
ने  रण  में हर जंग थी  जीती

लाल जोड़ा, चूडी खनकाती
जब   झाँसी ब्याह  आई थी
बरछी,  कटारी, तलवार को
 ही  मनु संग लेके आई थी।

गंगाधर  राव  से  विवाह था
तलवारों    से  नेह प्रगाढ़ था
सप्रेम  थी  कुछ  शामें  बीती
रूठ गई फिर जीवन से प्रीति

इक  बालक को था जन्म दिया
वात्सल्य ,  दुलार   पूर्ण  किया
नियति  में था कुछ और लिखा
काल,भाग्य से ही विवश दिखा

खुशियाँ उसको  रास न आई 
टूटी   चूड़ियाँ,  सूनी  कलाई
साहसा ही था  वैधव्य मिला
जीवनदीप तब कोई न जला

पति,पुत्र ने था जीवन खोया
रानी   संग  काल  भी  रोया
लक्ष्मी  तब  विधवा  हुई थी
झाँसी  फिर भी सुहागन थी

हालातों   से  हार  न  मानी
साहस,हिम्मत लड़ती रहती
अत्याचार से कभी  न हारी 
पुरुष सी वह इक नारी थी।

दुख,आघात आँचल में समेटे
चल  पड़ी  रण भूमि में रानी
योद्धा  सी शत्रु  को  संघारी
सिंह  सी  वो रण में हुँकारी

लक्ष्मी थी  इक विदूषी नारी
गुणगान   करे   बारी  बारी
फिरंगी भी सारे  हैरान हुये
जाने  कितने बलिदान हुये 

रानी  की  ये कठोर साधना
देशप्रेम की हृदय में भावना
था  सर्वस्व  बलिदान किया
भारत माँ को सम्मान दिया ।

✍🏻"कविता चौहान"
    स्वरचित एवं मौलिक