****सूना सदन****
पत्थर के दरवाज़े दीवारें
पुराने सदन आई दरारें
कभी रश्मियाँ न ही झाँकती
बरबस सी निशा मुख ताकती
बरसों ही आवाक मौन बड़ा
तृण रज कदम लिपटे खड़ा
गहन तमस सदन में पसरा
तम उजास तब नाता गहरा
बढ़ते कदम बाँधती जंजीरें
मूक संवाद करती तस्वीरें
जलती तपती एक अँगीठी
सुखद बनें स्मृतियां मीठी
उग आई सेवार दीवारों में
दूर दिखता प्रदीप दरारों में
अंनत ध्वनि बरबस ही ठहरे
गूँज, ठहाके फिर जन बहरे
करुण क्रंदन करती दीवारें
पथराई अक्षि सदन निहारे
नभ सितारा एक पल चमका
क्षणिक आस अंतर्मन दमका
सुदूर अवलोकित सितारे
सजल नयन बसते नज़ारे
साँझ ने ली रुचिर अंगड़ाई
निशि ने सारी पीड़ा सुनाई
निर्जन सदन तब पुकारता
किंचित पथ कभी ही निहारता
रवि उज्जवल रश्मि बिखेरे
कण कण उजास हो बहुतेरे
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