कोरोनाकाल के समय की बात है । लॉकडाउन के बाद बीमारी से उठे लोगों के कामकाज काम धंधे भी चौपट हो गए थे। जिसके कारण रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया था। मजदूर वर्ग जो रोज कमाते हैं रोज खाते हैं।उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी।
उसी समय की बात है मैं अपने ऑफिस में रोज की तरह काम निपटाकर 5:00 बजे घर जाने के लिए तैयार होने लगी ।जैसे ही मैंने गाड़ी पार्किंग में से उठानी चाही। एक छोटा बच्चा उसकी उम्र मुश्किल से 8 साल थी। मेरे पास आया और कहने लगा दीदी हम गाड़ी साफ कर देंगे हमको बहुत अच्छी गाड़ी साफ करना आता है। मैंने कहा मैंने गाड़ी कल ही साफ करवाई है कल ही धुलवाई है ।अभी तो नहीं साफ करवाना इस पर वह कहने लगा। दीदी प्लीज साफ करवा लो पापा भी काम पर नहीं जाते । साफ करवा लो प्लीज दीदी ।उसके पास एक साइकिल थी उसमें एक छोटा सा कपड़ा वह दबा कर लाया था । मैंने कुछ देर सोचने के बाद उसकी तरफ देखा उसके नन्हे नन्हे हाथ और मासूम सा मुखड़ा देख कर में द्रवित हो उठी । मैंने कहा ठीक है कर दो ।
उसने बहुत छोटा सा कपड़ा उठाया जो की रुमाल के बराबर था। उस गाड़ी के आगे का भाग साफ करने लगा उसने कुछ दो-तीन कपड़े ही लगाए थे ।मुझे हंसी आ गई मैंने कहा ठीक है गाड़ी साफ कर दी है ।तुमने अच्छी की है ना दीदी । मैंने कहा हां बहुत अच्छी की है । वह एक आशा भरी नजरों से मुझे देखने लगा । हो गया दीदी और तो कुछ नहीं करना ? नहीं बस तुमने बहुत अच्छी साफ कर दी है । वह रुमाल के बराबर कपड़े को गाड़ी का एक हिस्सा भी साफ नहीं कर पाया था । वह चुपचाप अपनी साइकिल के पास जाकर खड़ा हो गया और मेरी और देखने लगा । मैंने अपने पर्स मेसे मैंने उसके हाथों में 500 रुपये देकर पूछा ठीक है ना ? हाँ, बिल्कुल ठीक है। कहते हुए उसके चेहरे पर एक बहुत प्यारी मुस्कान उभर आई थी मुझे वह मुस्कान ही चाहिए थी। मैंने उसे काम काम के लिए ज्यादा पैसे नहीं दिए बल्कि उस प्यारी सी मुस्कान के लिए थोड़े से पैसे दिए । वह मुस्कान बहुत कीमती थी मेरे लिए ।उसने अपनी मुट्ठी में उन पैसों को कसकर दबा लिया साइकिल उठाई और हँसते हुए चला गया। वह बहोत खुश था मानो उसे खजाना मिल गया हो । मैं उसकी प्रसन्नता देखकर आनंदित थी।
0 Comments
Post a Comment