***पर्यावरण***
बाग बगीचे  हरीतिमा सारी 
इनसे  सुंदर  दुनिया  न्यारी
 पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं
 हर  मानव  की  जिम्मेदारी

 प्रकृति से न करो खिलवाड़ यूँ
हो  जाओगे  लाचार  बेबस ही
ओजोन परत ही क्षीण हो रही
धरा  प्रतिदिन  नमी  खो  रही

ग्लेशियर पिघल रहे भारी
रो  रही  ये वसुधा बेचारी
प्राणी सब वर्षा को तरसें
काले पयोद फिर न बरसें

वृक्षों  को कभी न काटना
हरियाली  निसदिन बाँटना
परिंदों  का सदा रहे बसेरा
सुंदर सलोना तब हो सवेरा

करुण क्रंदन करती वसुधा
न  बने  कोई  राह  में बाधा
धरती को हम संरक्षित करें
धानी  चुनर   से  गोद  भरें

सबसे   सुरक्षित   गोद   वसुधा
जल वायु सब ही निशुल्क मिला
 कर ले  कदर  मानव तू  इनकी
सुंदर, सुगंधित उपवन है खिला

पेड,पौधे अनगिनत लगायें
धरा  की  हरियाली  बढ़ायें
प्राणवायु वृक्ष सदा ही देते
शुद्ध  हवा  ताज़गी  समेटे

प्रदूषण फैलाये वाहन सारे
करते    रक्षा    वृक्ष   हमारे
फिर भी प्रतिदिन बलि चढ़ते
सैकड़ो  पेड़  नित  ही कटते

धरा तो है इक जीवनदायिनी
अबाध, सी वो सतत प्रवाहिनी
आओ  इसे  हम  सब  बचायें
आज अपना कर्तव्य निभायें।

✍️ "कविता चौहान"
      इंदौर (म.प्र)
      स्वरचित एवं मौलिक