आधुनिक युग के प्रेम पर कविता !!
***आधुनिक युग का प्रेम हमारा***आधुनिक युग का प्रेम निराला
डाल गले मे अनोखी माला
व्हाट्सएप माध्यम मिलन के
सोशल मीडिया साधन ब्रेकअप के
"लिव इन"रह बढ़ती नज़दीकी
बिन विवाह के बनती संगिनी
जिम्मेदारी फिर पड़ती भारी
बनाते दूरी सब बारी बारी।
सम्बन्धों की बदली परिभाषा
बदली चाह बदले प्रत्याशा
विचलित, उद्वेलित हो सारे
क्षणिक बनते सबंध सारे
अजब फिर ये हिय स्पंदन करे
संग विमुख तब निस्पंदन बने
धैर्य, संतोष विरले होई
बेबस अँखियाँ शून्य में खोई।
आधुनिक प्रेम विकल्प बहुतेरे
क्षणभर भी कोई संग न ठहरे
प्रेम यूँ न होता यदा कदा
नेह ,प्रेम रहता समान सदा।
त्याग, बलिदान तब दूर हुआ
दिल ये बेचारा काफूर हुआ
अंनत बनी सारी अभिलाषा
जागे मन मे नव्य पिपासा
शाश्वत प्रेम तो विस्तृत नभ सा
केसरिया, रवि के आरम्भ सा
उज्जवल धवल दर्पण के जैसा
राधा किशन के समर्पण सा।
प्रेम तो केवल प्रेम कहलाता
न कोई उसे कभी बदल पाता
प्रेम जिस तिस को मिल जाता
हॄदय इक पुष्प सा खिल जाता।
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