जय जय जय हो दशा माता
जय जय जय हो दशा माता
सुख संपत्ति आनंद की दाता
हस्त त्रिशूल सरोज धारिणी
दुख संताप पीड़ा निवारिणी
सुख वैभव हेतु पूजी जाती
सुहागिन नारियों को वर देती
जीवन को यूँ शीतल करके
जीवन में अमृत भर देती।
पीपल देव संग पूजे जाते
माँ का तब जयकारा लगाते
जनजन की तुम भाग्य विधाता
जय जय जय हो दशा माता।
जो नित्य स्नान कर ध्यावै
कष्ट उसके माँ पार लगावै
गृह,भवन,व्यापार समेत वो
धन,संपदा, को नित ही पावै।
भक्तों के तुम कष्ट निवारतीं
धूप, दीप से करें आरती
रोग, बीमारी दुख हर लेती
प्रसन्न हो मन चाहा वर देती।
प्रेम, भक्ति से जो माँ पूजे
पीड़ा ,दोष प्रतिक्षण छूटे
पुष्प,नैवेध से प्रसन्न करना
माँ की पूजा संपन्न करना।
जगमग ज्योति अर्पित करना
सच्चे मन से स्मरण करना
डोरी बाँध प्रदक्षिणा करते
सुख,वैभव की कामना करते।
व्रत, पूजन से करें साधना
माँ करती पूर्ण उसकी कामना
कल्याण, स्नेह की प्रदाता
जय जय जय हो दशा माता।
✍️"कविता चौहान"
स्वरचित एवं मौलिक
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