********शिव********
शिव तो है अंनत अविनाशी
विराजे विश्वनाथ काशी
महिमा तेरी बड़ी निराली
करते सदा नन्दी की सवारी

भाल पे सुंदर चन्द्र साजे
गंगाधर बन गंगा को थामे
कभी त्रिलोकी रूप अघोरा
महादेव,शिव,शंकर, भोला

तुम ही उमा के महेश्वर हो
आशुतोष,चन्द्रशेखर  हो
थामें हाथ विष का प्याला
नीलकंठ बन सब को निहाला

गले सर्प की माल लटकाए
भस्म,भाँग, धतूरा,खूब भाए
ओढ़े तन पे छाल मृग की
कृपा कर ताप हरे जग की

क्रोध से जब महादेव भरे
त्रिनेत्र फिर खोल दिया करे
कामदेव को भस्म कर डाला
स्वरूप इक नया दिखलाया

हे चन्द्रशेखर अब तुम आओ
खोल त्रिनेत्र पाप मिटाओ
उद्धार कर कृपा कर जाओ
डूबते  जन को पार लगाओ

✍🏾"कविता चौहान "
      स्वरचित एवं मौलिक