होली.....


फागुन की मस्ती छाई
घर आँगन में खुशियाँ लाई
तमाशों की गूँज अपनो को
ले देखो फिर होली आई।

मीठी गुझिया और सेव की
 सुगंध सारे घर को महकाई
ढोल ,नगाड़े सब बजाएँ
बच्चे,बूढ़े सब नाच नचायें

अब रंग बिरंगी पिचकारी भी 
बच्चों ने बाबा से मंगाई
रंग गये घर और गलियारे
चेहरे पर रंग गुलाल लगा
इक दूजे को देखे पुकारें।

होली के सब रंग अनोखे
लाल तो कभी पीले होते
रंग सबसे सुंदर ही चुनना 
सतरंगी सपने तुम बुनना

खेतों में चमकी बालियाँ
हरी भरी फिर नज़र आई
शरद ऋतु की हुई विदाई
ग्रीष्म की आहट है आई

बैर,नफरत ,निराशा भूलना
दुश्मनी,से तुम दूर रहना
बनाएँ प्रेम,मस्ती की टोली
ऐसी खुशियों की हमजोली
आज फिर आई है होली


"कविता चौहान"
"स्वरचित एवं मौलिक"