दौड़ता सा इक क्षण
ठहरता कभी पल
सिमटे रूचिर तन
सहमे चंचल मन
मौन पुरानी दीवार
बंद खिड़की किवाड़
मजमा नित अनाम
ठहरी स्याह सी निश
लौ विहीन उजास
तड़पे मन भीतर
नयन लगाये आस
सुना सा अनाम पथ
ना उभरे पद्चाप
चलती रुकती साँस
आकुल पीड़ा प्यास
बन नीरव अधर
नवागत परिहास
फिर नई ये सुबह
अलहदा सा प्रभात।।
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