कभी पुरुष में भी त्रियाचरित्र  होता है।
 
 
 
 
 
 
 
 
कभी पुरुष में भी त्रियाचरित्र  होता है।
कुछ नज़र आता है तो किसी मे छिप जाता है।

न होते है सभी इस पंक्ति में खड़े
है लेकिन कुछ इसमें विशेषज्ञ बड़े

कभी प्रेम का आडम्बर , झूठी वेदना दिखलाता है।
नारी के समान आंखों से नीर बहाता है।

बहलाकर बातों में अपनी छल नया दे जाता है।
रचकर भीतर प्रेम का स्वांग एकांत में किरदार नया बनाता है।
छुपाने के लिए कमियां अपनी सैकड़ों आरोप लगाता है।
न उतरकर भी कर्त्तव्यों में कभी खरा 
पुरुषत्व का झूठा अहंकार दिखाता है।

दिखाकर भावनाओं को निरर्थक अधिकार
 अपना जताता है।
गलत सही को छोड़ वास्ता संबन्धों का देता जाता है।
महत्व केवल खुद के सम्मान का दर्शाता है

होता है कई पुरुषों में भी कुटिल चरित्र 
जो अचानक ही दिखाई पड़ जाता है