बन के दुल्हन सी

 

 

 

 

 

 

 

बन के दुल्हन सी आज पिया का इंतज़ार कर रही हूं
देखकर आईना सोलह श्रृंगार कर रही हूं ।

लगता है आज है कुछ खास सखी री
कानों में कुंडल आंखों में काजल
मांग में सिंदूर भरके बन सँवर रही हूं।

रहे अखण्ड सुहाग ,बनी रहूं सुहागन सदा
लम्बी उम्र की मैं कामना आज कर रही हूँ

हांथों में मेंहदी , कंगन पायल बिछुड़ी
खनकाकर नेह के नए धागे
बुन रही हूं।

सजा धजा है पैरों में महावर भी
याद करके सात वचनों को संग उनके  चल रही हूं।

आसमान में निकल आया चाँद
मुखड़ा उसका देखकर ठहर रही हूं।

सजाकर आरती की थाल छलनी की ओट से उन्हें देख रही हूं।
सौभाग्य ओर स्नेह की डोर बनी रहे  सदा चौथ माता से यही कह रही हूं।