आ कहीं दूर चले


 

 

 

 

सात समंदर दूर नगर के पार चलें 

आ जाओ मनमीत 

कहीं हम दूर चलें !


जहां प्यार हो , उठती लहरें सूरज की 

रक्तिम किरणें नित अपना 

दीदार करें !

आ जाओ मनमीत 

कहीं हम दूर चलें !


तेरी अंखियों में देखूं दुनिया सारी ,

सारी खुशियां हों ऐसा संसार चलें !

आ जाओ मनमीत

कहीं हम दूर चलें !


दूर-दूर तक बस पसरी खामोशी हो ,

राहों में भरकर अपना ही प्यार चलें !

आ जाओ मनमीत

कहीं हम दूर चलें !


चलो बसाएं हम सपनों की नई नगर 

हर ख्वाहिश हो पूर्ण जहां के पार चलें !

आ जाओ मनमीत

कहीं हम दूर चलें !


ना  कोई   तेरा  या   कोई  मेरा  हो

साहस भर अंतर में हम भरपूर चलें !

आ जाओ मनमीत

कहीं हम दूर चलें !


एक सुनहरा सपना हो इन आंखों में ,

और हवाओं को मिलकर मजबूर करें !

आ जाओ मनमीत

कहीं हम दूर चलें !