वो 

                               


 

 कितना करीब था मुझे लगा मेरा हो गया वो

देखा सब सुन लिया सब लगा मुझमे कहीं खो 

गया वो ,डर था खो जाने का उसके जाने कब

 बदल गया वो | 

करती थी उसकी हर बात पर यकीन

 न जाना कैसे दगा दे गया वो 

बदल जाना फितरत थी उसकी शायद

फिर आखिर कैसे वफ़ा करता वो 

चलते चलते रुक गई उसकी खतिर 

बीच राह में तन्हा छोड़कर तेज़ी से आगे 

बढ़ गया वो |