*****होली*****
रंगों का त्यौहार निराला
बच्चे,बूढ़े सबको भाये
रंग बिरंगी पिचकारी को ले
जनजन सारे पथ को आये।
रंग गये यूँ सड़क गलियारे
जल तरंग भरे ये गुब्बारे
चकली,गुझिया,सेव पपड़ी
रंगोली,साथिया व चौकडी
लाल,गुलाबी सफेद नीला
कोमल,प्यारा मुखड़ा खिला
रंग बिरंगे मौसम को लेके
आया फिर से फाग महीना।
क्षणभर इस मन को बहला ले
दुखमय सा जीवन सहला ले
हॄदय को यूँ ही रंगीन करें
रंगहीन तो कोई भी न रहे।
फूलों ने नव्य रंगत पाई
गुलाब,जासवंती महकाई
टेसू की लद गई डाली
पथ न कोई दिखते खाली।
है जीवन ये अत्यंत लघु सा
रंगीन पुष्प से रंग चुनना
हर्ष,प्रमोद से भरी झोली
दुख,चिंता की जलाये होली।
खाकर गुझिया भाँग पी लो
सुंदर रंगों से होली खेलो
तेज धार संग चली पिचकारी
आओ रंग दे दुनिया सारी
मदमस्त पुरवा भाँग ठंडाई
हँसी ठिठोली तो कहीं लड़ाई
रंगीन मुखड़े बरबस झूमे
बच्चे ,बूढ़े खूब ही घूमे।
दहक उठी पलाश की डाली
अमलतास की रंगत निराली
न रहे कोई चुनर यूँ कोरी
हररंगो से मनाये होली।
मतवालों की मस्त वो टोली
खुशियों भरी सबकी झोली
हल्दी,कुमकुम, भस्म रोली
मिलजुल के मनाये होली।
✍️"कविता चौहान"
स्वरचित एवं मौलिक
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