Dowry Poem || दहेज प्रथा पर दिल को छू लेने वाली एक कविता ||



रिश्ते  का ना  व्यापार करो
नारी पर ना अत्याचार करो
धन की तुम लालसा हटाओ
दहेज  कुप्रथा को मिटाओ

माँ, भगिनी,भार्या बनके वो
जीवन को यूँ संवार देती
नारी बिन जीवन सुना सा
कुछ क्षण तो तुम विचार करो

धन,रूपयों का लोभ छोड़ो
स्नेह से सारे नाते जोड़ो
शेष है समय अब भी कुछ तो
मानवता को शर्मसार न करो

इक बेचारी आग में जलती
कुरीतियों की वो बलि चढ़ती
जागरूक बन विरोध तो करो
नारी की तुम ही रक्षा करो

कुंठित भावना को त्याग दो
प्रेम में उसे भी तो भाग दो
मानव सा यूँ व्यवहार करो
उदाहरण नया तुम ही बनो

स्त्री जिस घर मे सदा हँसती
माँ लक्षमी उस भवन में बसती
हॄदय से लालच मिटाओ
दहेज रूपी दानव हटाओ

अबला पर कफ़न न डालना
जनक से  बन उसे तुम पालना
मूल्य न कभी तुम मांग लेना
प्रेम की महत्ता जान लेना।